वीर रानी - अहिल्याबाई होळकर! - Hindi (Click Here)
वीर रानी - अहिल्याबाई होळकर!
अपने देश में अनेक राज्यों में कर्तुत्ववान पुरुष तथा महिला शासक भी हुई है! महिला शासक मे एक सुप्रसिद्ध - कर्तुत्ववान नाम सामने आता है: जिन्होंने अपने राज्य की सीमा लांघकर अन्य राज्यों पर भी अपना राज प्रस्थापित करने की कोशिश कि है! वो है - वीर राणी, अहिल्याबाई होळकर!
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में चौंडी के शिंदे घराने में (माणकोजी शिंदे के घर) इ.स. ३१ मई १७२५ में अहिल्या बाई का जन्म हुआ! पेशवाईके उस काल में तत्कालीन प्रथा नुसार पिता माणकोजी ने मालवा के सूबेदार इतिहास प्रसिद्ध मल्हार राव होलकर के सुपुत्र खंडेराव इनसे अहिल्याबाई का ८ वें साल में ही विवाह किया! १७५४ में कुम्हेर के लड़ाई में पति खंडेराव शहीद होने के बाद, अल्प कालावधि के बाद पुत्र मालेराव का भी निधन हो गया! तथा मल्हार राव के कुशल और महत्वपूर्ण मार्गदर्शन के तलें अहिल्याबाई युद्ध, नेतृत्व, प्रशासन, न्याय - नीति आदी गुणों से परिपूर्ण हो रही थी! तभी उसी वक्त १७६६ में ससुरजी - मल्हारराव होळकर की मृत्यु हो गई! मल्हार राव की मृत्यु होने के पश्चात राजसत्ता की पढ़ाई में निपुण अहिल्यादेवी ने मावला प्रांत की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली, और १७६७ से १७९५ तक २८ साल उन्होंने होळकर घराने का राजपाट यशस्वी पूर्वक संभाला!
अहिल्याबाई होळकर एक कर्तृत्वसंपन्न स्त्री थी! उनका व्यक्तिमत्व प्रभावी था! लोक कल्याणकारी विचारों की तथा महापराक्रमी स्त्री होने के कारणही अहिल्यादेवी इंदूर की महाराणी बनकर इतिहास में अजरामर हो गई! अपने कार्यकाल में उन्होने अनेको लोक कल्याणकारी कार्य किये है! उन्होने ग्रामोद्योग, सुती वस्त्रोद्योग और कलात्मक वस्तूओं की निर्मिती को प्रोस्ताहन दिया! तालाब बांधे, हरिद्वार, पुष्कर, बनारस यहां के घाट, रामेश्वर की धर्मशाला तथा जेजुरी का खंडोबा (जिसका उल्लेख महात्मा ज्योतिबा फुले जिने अपने लेखन मे बळीराजा का सेनापती ऐसा किया है) इसका मंदिर बनवाया तथा कई अन्य मंदिरोंका भी जीर्णोद्धार किया! पेशवाई जैसे सनातनी राज्य में अहिल्या देवी रहती थी, इसलिये पेशवाओंसे उन्हें बार बार मुकाबला करना पडता था! पेशवाईका सभी जगसे दबाव होने के बावजूदभी वें उसमेंसे बडी चतुराई से मार्ग निकालती थीं! इतना ही नहीं, अपने तरीके से राज्य संपन्न होने पर वो ज्यादा जोर देती थी! रानी अहिल्यादेवी जी के जागृत न्यायबुद्धी को मानवता का स्पर्श था! निपुत्रिक विधवाओंकी आयको जप्त न करके वे "गोद विधानान्वये" उनको बांटे, ऐसा फैसला अहिल्याबाई करती! यथा इस मानवता - ममत्व के विचारोंको विरोध करने की सूचना करने वालो पर वे बरसती! चोर - डाकू - ठगोंसे प्रजाजनको बचाने के लिए, उनका बंदोबस्त करने के लिए अहिल्याबाई ने तो अपनी लाडली बेटी - मुक्ताबाई को ही दांव पर लगया! "चोर - ठगों जो विर योद्धा बंदोबस्त करेगा उसका विवाह मुक्ताबाईसे किया जायेगा" ऐसा ऐलान ही उन्होंने किया! तथा वीर यशवंतराव फणसे ने ठग - पेंढारोका यशस्वी से नाश करने पर - वो जीतने पर उनका विवाह भी मुक्ताबाईसे अहिल्यादेवी ने सत्कार पूर्व कराया! उस समय की सती - प्रथा अनुसार अपने पति खंडेराव होळकर के मृत्यु के बाद भी पत्नी - अहिल्याबाई सती नहीं गई! 250 साल पहले पेशवाई के काल में भी उनके ऐसे निडर - साहसी फैसले, उनके पुरोगामी - समाज सुधारक विचार, और जात पात को ठुकरा कर लोकसेवा को - जनहित को प्राधान्य देनेवाली विशाल मानवतावादी दृष्टि - निश्चित तौर से क्रांतिकारी ही थी! तथा आज भी उनके प्रभावी उदार व्यक्तिमत्व का चिंतन, मनन और अनुकरण करना अत्यावश्यक लगता है! सम्पूर्ण भारत वर्ष पर छाई हुई ऐसी महान हस्ती का - आदर्श, वीर, जन - कल्याणकारी महारानी - अहिल्याबाई का १३/०८/१७९५ को निधन हुआ!
एक महिला होकर भी, २५० साल पहले के समाज के माहौल में वीर रानी अहिल्याबाई होलकर की जीवनी में उन्होंने जो महान कार्य किए है, कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए है, उन घटनाओं पर गर हम गौर करेंगे तो निश्चित तौर से हम आश्चर्य से अचंभित हो जाएंगे! अहिल्याबाई जी एक धुरंधर, कुशल राजनीतिज्ञ थी तथा अच्छी लोक हितकारी शासन कर्ता थी! उनका अनोखा, प्रभावी, महान व्यक्तिमत्व निश्चित तौरसे हमें स्फूर्तिदायक रहेगा और उनसे प्रेरणा लेकर हमारे राजनीति का सफर भी सुनाहरा फुर्तीला और आदर्श बनाएगा!
जय अहिल्यादेवी - जय भारत!
Post a Comment